Wednesday, April 15, 2009


हिन्दी का एक और महारथी विदा .

हिन्दी के वयोवृद्ध गाँधीवादी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर का विगत दिनों निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। उनको पिछले दिनों महाराजा अग्रसेन अस्पताल में साँस लेने में तकलीफ के कारण भर्ती कराया गया था। करीब दो सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद रात पौने एक बजे उन्होंने अंतिम साँसें लीं। विष्णु प्रभाकर का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्होंने मृत्यु के बाद अपना शरीर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दान करने का फ़ैसला किया था। उन्हें उनके उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उनका लेखन देशभक्ति, राष्ट्रीयता और समाज के उत्थान के लिए जाना जाता था। उनकी प्रमुख कृतियों में 'ढलती रात', 'स्वप्नमयी', 'संघर्ष के बाद' और 'आवारा मसीहा' शामिल हैं. इनमें से 'आवारा मसीहा' प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार शरतचंद्र चटर्जी की जीवनी है जिसे अब तक की तीन सर्वश्रेष्ठ हिंदी जीवनी में एक माना जाता है.प्रभाकर को पद्म विभूषण के साथ ही हिन्दी अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, शरत पुरस्कार आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में अर्द्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है , डॉक्टर, सत्ता के आर-पार, मेरे श्रेष्ठ रंग, आवारा मसीहा, शरतचन्द्र चटर्जी की जीवनी, सरदार शहीद भगत सिंह, ज्योतिपुंज हिमालय शामिल हैं।वह हमारी पत्रिका कला प्रयोजन के बेहद उत्सुक पाठक थे और अक्सर हर अंक पर अपने हाथ से पत्रिका की सामग्री पर अक्सर बेहद तारीफ भरी प्रतिक्रिया भेजते थे। कला प्रयोजन का सम्पादकीय परिवार इस वयोवृद्ध हिन्दी पुत्र के निधन पर शोक में है और प्रभाकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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